अजमेर में इस्लाम की दो प्रमुख विचारधराओ का मिलन, देवबंदी और बरेलवी आए एक मंच पर


जमीयत उलमा ए हिंद ने अपने 33वें अधिवेशन के आखिरी दिन दो लाख से अधिक जन समूह के सामने आपसी एकता, दलितव मुस्लिम संयुक्त प्रयासों की घोषणा की औम मुस्लिम पर्सनल लॉ में किसी प्रकार के हस्तक्षेप को खारिज करते हुए अपने घोषणा पत्र में कहा है अगर इस्लामी सिद्धांतों के खिलाफ कामन सिविल कोड लाया जाता है यामुस्लिम पर्सनल लॉ में फेर बदल किया जाता है तो इस मामले में मुसलमानों की स्थिति देश में स्वतंत्र नागरिक की सुरक्षित नहीं रहेगी।
इस अवसर पर आला हजरत मौलाना अहमद रज़ा खां रहम. बरेलवीके नवासे मौलाना तौकीर रजा खान बरेलवी और दरगाह हजरत अजमेरी के सैयद ज़ादगान और शेख जादगान मौजूद थे। मौलाना तौक़ीर रजा खान ने अपने संबोधन मेंजमीयत की ओर से मिल्ली एकता की कोशिश को स्वीकार करते हुए कहा कि आपसी सहयोग व समन्वय मिल्लत की समय बड़ी ज़रूरत है। यह शरीअत की सुरक्षा और निर्दोष बच्चों को जेलों से मुक्त कराने, देश के लोकतंत्र के बचाने का एकमात्र रास्ता है। उन्होंने साथ ही देवबंद और मजीयत से जुड़े उलमां को बरेली शरीफ आने की भी दावत दी.मोलाना तौक़ीर रजा ने कहा कि मसलक में कोई समझोता नहीं किया जा सकता। लेकिन मैं स्वीकार करता हूँ कि आज अपनों के ही बीच हूँ ।
मौलाना महमूद मदनी ने राष्ट्रीय एकता को देश की जरूरत बताते हुए कहा कि मुसलमान इस देश से प्यार करने में व संबंध में किसी से कम नहीं है, ‘‘मैं पूरे विश्वास से कहता हूं कि अगर मेरे देश को मेरी जरूरत होगी तो इसके लिए खून बहाना मेरे लिए गर्व की बात होगी, हम दुनिया को यह भी बता देने चाहते हैं कि हमेंहर तकलीफ और हर दुख स्वीकार है, लेकिन हमारे दीन पर कोई आंच आए, हमें यह मंजूर नहीं है।’’ मौलाना मदनी ने जमीयत उलेमा हिंद के पूर्व अध्यक्ष हजरत मौलाना हुसैन अहमद मदनी के हवाले से घोषणा में की इस बात को दोहराया कि ‘‘मुसलमान भारत में पूरी धार्मिक स्वतंत्रता और पूरी संस्कृति के साथ जिन्दा रहेंगे और किसी गैर की गुलामी स्वीकार करने से वह सम्मान केसाथ मरना ही पसंद करेंगे’’

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