दिव्यांग बच्चों की शिक्षा पर जोर, 6 से 18 साल तक निशुल्क होगी शिक्षा : सुरेश मिश्र

कादरचौक जनमत । क्षेत्र के घटियारी गावँ में दिव्यांग बच्चे समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए कक्षा  9 में नामांकन के लिए अभिभावक को घर जाकर परामर्श दिया। समेकित शिक्षा के विशेष शिक्षक सुरेश कुमार मिश्र ने कहा दिव्यांग बच्चों को समावेशी, गुणात्मक शिक्षा देने के रास्ते में कई चुनौतियां हैं। जैसे, ऐसे बच्चों को स्कूल भेजने के लिए जागरूकता अभियान, उनकी जरूरतों के मुताबिक ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था, विशेष कौशल वाले अध्यापक की नियुक्ति और स्कूल भवनों को उनके लिए बाधा मुक्त बनाना। इसमें सबसे खास है, लोगों के दिमाग में यह सोच पैदा करना कि पढ़-लिखकर ये दिव्यांग बच्चे किसी के मोहताज नहीं रहेंगे और समाज की एक उत्पादक इकाई बन सकेंगे। हालांकि, जब तक स्कूल की इमारतों और कक्षाओं को उनकी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए आकार नहीं दिया जाएगा, तब तक दिव्यांग बच्चों के लिए समावेशी, स्तरीय तालीम मुहैया कराने में खास प्रगति हासिल नहीं होने वाली। दिव्यांग बच्चों के लिए एक स्कूल की इमारत कैसी होनी चाहिए, इसके लिए सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय व यूनीसेफ ने हाल ही में एक गाइडबुक जारी की है। यह गाइडबुक सभी सरकारी व निजी स्कूलों के लिए एक अहम दस्तावेज का काम कर सकती है। गाइडबुक में बताया गया है कि स्कूल भवन के प्रवेश द्वार व निकासी द्वार पर रैंप है या नहीं, यह जगह समतल है या नहीं, क्या यह बताने वाले साइनबोर्ड हैं या नहीं, स्कूल व शौचालय का फर्श फिसलने वाला तो नहीं है, शौचालय का दरवाजा इतना चौड़ा होना चाहिए कि व्हीलचेयर उसमें आसानी से अंदर जा सके। शौचालय के भीतर टॉयलेट सीट कितनी ऊंचाई पर फिक्स होनी चाहिए। लाइब्रेरी, स्वच्छ पेयजल, मिड डे मील एरिया तक उनकी पहुंच सुगम होनी चाहिए। कक्षा में डेस्क व टेबल आपस में जुडे़ होने से दिव्यांग बच्चों को बहुत दिक्कत होती है। इसी तरह, कक्षाओं में ग्रीन बोर्ड का इस्तेमाल होता है या नहीं, ग्रीन बोर्ड कमजोर नजर वाले बच्चों के लिए खास उपयोगी है, फिर क्लास की खिड़कियां गलियारे में नहीं खुलनी चाहिए, जैसी कई बातें इस गाइडबुक में हैं। लेकिन क्या यह उस देश में संभव है, जहां हमारे ज्यादातर ग्रामीण स्कूल अभी मूलभूत ढांचागत सुविधाओं के लिए ही संघर्ष कर रहे हैं। हाल ही में संसद द्वारा दिव्यांगों  के अधिकारों से जुडे जिस विधेयक को पारित किया गया है, उसमें दिव्यांग बच्चों के लिए कुछ खास प्रावधान हैं। अब दिव्यांग बच्चों को छह से 18 साल तक नि:शुल्क शिक्षा मुहैया कराई जाएगी, जबकि मौजूदा प्रावधान में यह आयु सीमा छह से 14 वर्ष है, जो शिक्षा के अधिकार कानून के तहत सभी वर्ग के बच्चों पर लागू होती है। दिव्यांग बच्चों की उम्र सीमा बढ़ाने के पीछे नजरिया यह है कि सामाजिक, आर्थिक व शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े समुदायों के और गांवों में रहने वाले लोग कई कारणों से अपने दिव्यांग बच्चों को कानून के तहत निर्धारित आयु के अनुसार स्कूल में नामांकन नहीं करा पाते। उनके बच्चे शिक्षा के मौलिक अधिकार से वंचित न रह जाएं, इसी मंशा से यह सुविधा दी गई है। ऐसे बच्चों के लिए स्कूलों और उच्च शिक्षण संस्थानों में आरक्षण भी बढ़ाकर पांच प्रतिशत तक कर दिया गया है ।


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