मोदी को इंडियाज डिवाइडर इन चीफ बताने वाली टाइम मैगजीन ने राहुल को भी नहीं बख्शा

जनमत एक्सप्रेस । पिछले हफ्ते अमेरिका की प्रतिष्ठित पत्रिका टाइम ने अपने कवर पेज पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर छापी. भगवा शेड की इस फोटो के साथ हेडलाइन दी गई-'इंडियाज डिवाइडर इन चीफ.' उधर अमेरिका सहित दुनिया के कई देशों में यह पत्रिका छपी और इधर भारत में इस पर बवाल शुरू हो गया. एक साथ कई मुद्दों पर विवाद हुए. पहला तो ये कि नरेंद्र मोदी से जुड़ा लेख पक्षपाती है. दूसरा ये कि टाइम पत्रिका पर एजेंडा फैलाने का आरोप मढ़ा गया. तीसरी और अंतिम बात ये रही कि आर्टिकल के लेखक आतिश तासीर विवादों के नायक बनकर उभरे क्योंकि वे ब्रिटिश मूल के पाकिस्तानी हैं. हालांकि इन सबके बीच जो लोग 'पक्षपाती, एजेंडे से भरे' टाइम पत्रिका के खिलाफ रोष जाहिर कर रहे थे, वे लोग इस आर्टिकल का मर्म समझने में चूक गए. इस चूक में दूसरे धड़े के लोग भी शामिल रहे जो नरेंद्र मोदी को 'एक्सपोज' किए जाने पर जश्न मना रहे थे.
टाइम में छपे लेख की खास बात यह है कि इसमें नरेंद्र मोदी पर अगर उंगली उठाई गई है तो राहुल गांधी को भी निशाने पर लिया गया है. जैसा कि आतिश तासीर के लेख में सवाल उठाया गया- 'क्या दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र मोदी सरकार का अगला पांच साल झेल पाएगा?' लेख के लब्बोलुआब से जाहिर है कि इसमें 'भारत को एक घृणास्पद मजहबी राष्ट्रवाद' में तब्दील करने के लिए नरेंद्र मोदी की कड़ी आलोचना की गई है. हालांकि तासीर का लेख कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को भी बख्शता नहीं दिखाई देता और उनका वर्णन नरेंद्र मोदी से कहीं ज्यादा तिरस्कार के साथ किया गया है.
उदाहरण के लिए इस लाइन पर गौर करें-'अनटिचेबल मीडीआक्रिटी'. ये वाक्य राहुल गांधी के लिए लिखे गए हैं जिसका अर्थ है 'साधारण दर्जे का ऐसा व्यक्ति जिसे समझाया, सिखाया नहीं जा सकता.' लेख में इससे भी बढ़कर एक बड़ी बात ये लिखी गई कि राहुल गांधी और उनकी पार्टी कांग्रेस नरेंद्र मोदी और बीजेपी सरकार की पर्याय (विकल्प) नहीं बन सकती. आतिश तासीर ने लिखा कि 'कांग्रेस पार्टी के पास वंशवादी विचारधारा से इतर देने के लिए कुछ और नहीं है. लिहाजा कांग्रेस में सियासी समझ (पोलिटिकल इमेजिनेशन) की घोर कमी है तभी राहुल गांधी की बहन प्रियंका गांधी को राजनीति में उतारा गया.'
'सामंती भारत'
टाइम का लेख नरेंद्र मोदी के साथ शुरू होता है जिसमें लिखा गया है कि भारत उन महान लोकतंत्रिक देशों में शामिल है जो 'लोकलुभावनवाद का शिकार' हो गया. नरेंद्र मोदी का उभार इसी लोकलुभावनवाद का परिचायक था, जिसका परिणाम ये रहा कि 'बहुसंख्यकों की आवाज उठाने की भावना प्रबल हुई जिसे नजरंदाज करना मुश्किल था.' जैसा कि तासीर लिखते हैं, इस लोकलुभावनवाद ने आजाद भारत के शुरुआती दशकों में 'सामंती वंशवाद' का आगाज कर दिया. सवाल है कि इस सामंती वंशवाद का जिम्मेदार कौन था? जाहिर सी बात है 'नेहरू के राजनीतिक वारिस' इसके पीछे मूल वजह रहे. दिलचस्प बात यह भी है कि टाइम पत्रिका ने नेहरू-गांधी परिवार पर वैसे ही आरोप लगाए हैं जैसे आरोप नरेंद्र मोदी उन पर लगाते रहे हैं.
लेख में लिखा गया कि 'कांग्रेस राज में भारत एक अंग्रेजीदां और भयभीत राष्ट्र बन गया था. हिंदुस्तान के बारे में ऐसा नजरिया बना कि अंग्रेजी बोलने वाला हिंदुओं का एक कुलीन वर्ग यहां राज करता है, जिसकी क्रिश्चियन और इस्लाम जैसे अल्पसंख्यक वर्ग से मिलीभगत है.
'डिवाइडर इन चीफ'
कांग्रेस जैसे कुलीन वर्ग का वर्चस्व और आजाद भारत के शुरुआती वर्षों में सत्ता की बात करने के बाद टाइम का लेख नरेंद्र मोदी के पांच वर्षीय राज का वर्णन करता है. लेख में 'घृणास्पद मजहबी राष्ट्रवाद के माहौल' का जिक्र किया गया है. आतिश तासीर ने नरेंद्र मोदी को कई मोर्चों पर घेरा है. सरकार पर आरोप लगाए गए कि इसका खुलेआम समर्थन एक ऐसे 'मॉब (लोगों के समूह) को लेकर है जो पिछले 5 साल में मुस्लिमों को निशाना बनाता आया है. महिलाओं के मुद्दे पर इस सरकार को 'धब्बेदार' बताया गया. साथ ही शैक्षणिक संस्थाओं पर हमले इस तर्क के साथ कराए गए कि पूर्व में इसने हिंदुस्तानी संस्कृति और धर्म को नीचा दिखाने का काम किया है.
लेख के पाठकों के जहन में सवाल उठता है कि अगर नरेंद्र मोदी सरकार में नहीं आए तो आगे कौन होगा. इसके जवाब में आतिश तासीर राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी को इस सीन से बाहर हुआ बताते हैं. तासीर आगे लिखते हैं, 'नेहरू-गांधी परिवार के अगले मेंबर के पास वंशवादी विचारधारा पसोसने के अलावा और कुछ नहीं है. हिंदुस्तान की सबसे पुरानी पार्टी के पास प्रियंका गांधी को राजनीति में उतारने से ज्यादा और कुछ राजनीतिक सूझ-बूझ नहीं है.' हालांकि तासीर यह भी लिखते हैं कि यह चुनाव मोदी की हार का है.
तासीर ने आगे लिखा, 'मोदी का सौभाग्य है कि उन्हें ऐसा कमजोर विपक्ष मिला है, कांग्रेस की अगुआई में निम्नवर्गीय पार्टियों का ऐसा गठबंधन है जिनके पास मोदी को हराने के अलावा दूसरा कोई एजेंडा नहीं बचता.'
टाइम के लेख में छपी ये ऐसी बातें हैं जिससे लोग वंचित रह गए और कवर पेज पर छपी तस्वीर में उलझ गए. जबकि इसी पत्रिका में एक लेख ऐसा भी छपा जिसका शीर्षक 'मोदी द रिफॉर्मर (सुधारक मोदी) दिया गया और लिखा गया कि नरेंद्र मोदी ही हिंदुस्तान में आर्थिक सुधार की सबसे बड़ी आशा हैं.'
हम ऐसे समय में जी रहे हैं जहां इस पर बिल्कुल ताज्जुब नहीं होना चाहिए कि लोग बिना लेख पढ़े अपने लाइक और डिस्लाइक ट्वीट करते हैं. जैसा कि इस बार का चुनाव प्रचार गवाह है-भाषण तो बहुत है लेकिन मृतप्राय है ।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पिता की हत्या का आरोपी बेटा गिरफ्तार, खेत में घेरकर दो तमंचों से बरसाईं थीं गोलियां

हैरतअंगेज: सब्जी में थूक लगाने की घटना पुलिस की ही थी साजिश, जांच के बाद दोषी सिपाही निलंबित

सपा प्रत्याशी की आवभगत में लगे उसहैतवासी, सुरेंद्र बोले 'इंटर कॉलेज दोगे तब करेंगे सपोर्ट'