भाजपाइयों के आपराधिक मुकदमे वापसी का आदेश रद्द करने को लोकमोर्चा ने राज्यपाल को भेजा पत्र

बदायूँ जनमत। लोकमोर्चा ने भाजपाइयों पर 29 साल से चल रहे आपराधिक मुकदमें की वापसी के योगी सरकार के फैसले पर एतराज जताया है। आज लोकमोर्चा संयोजक अजीत सिंह यादव ने राज्यपाल को पत्र भेजकर भाजपाइयों पर लगे मुकदमें को वपास लेने के आदेश को रद्द करने की मांग की है। 
आज जारी बयान में लोकमोर्चा संयोजक अजीत सिंह यादव ने कहा कि योगी सरकार सत्ता का दुरुपयोग कर अपराधियों को संरक्षण दे रही है। उन्होंने कहा एक ओर योगी सरकार  आंदोलनकारियों पर फर्जी मुकदमें लगाकर जेल भेज रही है तो दूसरी ओर गंभीर आपराधिक मामलों में आरोपी भाजपाइयों से मुकदमें वापस ले रही है। इससे साबित हो गया है कि योगी सरकार को देश की न्याय व्यवस्था पर भरोसा नहीं है और वह कानून का राज स्थापित नहीं होने देना चाहती।
उन्होंने बताया कि मीडिया रिपोर्टों से ज्ञात हुआ है कि प्रदेश की योगी सरकार की संस्तुति पर राज्यपाल द्वारा जनपद के भाजपा नेताओं पर लगे आपराधिक मुकदमे को वापस लेने का आदेश दिया गया है। अनुसचिव अरुण कुमार राय ने इस बाबत जिलाधिकारी बदायूं को पत्र भेजकर लोक अभियोजक को न्यायालय में केस वापसी को प्रार्थना पत्र दाखिल करने का आदेश दिया है। प्रदेश की योगी सरकार द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 321 का दुरुपयोग कर महामहिम से सार्वजनिक न्याय के व्यापक हित के विरुद्ध आदेश करा लिया है। प्रश्नगत मामला इस प्रकार है - विधान सभा चुनाव के दौरान बदायूं जनपद में 10 जून 1991 को पुलिस ने विवादित पोस्टर लगाने पर दो भाजपा कार्यकर्ताओं देवकीनंदन निराला और मुकेश वार्ष्णेय को जेल भेज दिया था। उन्हें अगले दिन जमानत मिल गई। जनपद के कस्बा बिसौली के मदनलाल इंटर कालेज में 11 जून 1991 को भाजपा प्रत्याशी के समर्थन में साध्वी ऋतंभरा की जनसभा हुई । सभा के बाद मंच से एलान किया गया कि गिरफ्तार भाजपा कार्यकर्ता अभी तक जेल में बंद हैं, इसलिए सभी कोतवाली को घेरेंगे। भाजपा नेताओं के साथ करीब 10 हजार की भीड़ ने कोतवाली बिसौली पर पथराव किया। तत्कालीन कोतवाल शैलेन्द्र बहादुर चंद्र ने भाजपा प्रत्याशी दयासिंधु शंखधार समेत 39 भाजपाइयों को नामजद कर सैकड़ो अज्ञात के खिलाफ धारा 147, 332, 353, 307, 336, 427 और 504 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज किया था। प्रदेश में भाजपा सरकार बनने पर इस मामले में फाइनल रिपोर्ट (एफआर) लगवा दी गई । लेकिन कोर्ट ने एफआर को स्वीकार नहीं किया। जिला जज ने रिवीजन को भी खारिज कर दिया।
कोर्ट द्वारा एफआर को खारिज करने से साबित होता है कि सत्ता के दबाब में एफआर लगवाई गई थी। कोर्ट ने मामले को गंभीर माना था। जिस मामले में कोर्ट ने एफआर खारिज कर दी थी उस पूरे मुकदमें को ही खत्म कराने का आदेश करवाकर अब 29 साल बाद एक बार फिर भाजपा सत्ता का दुरुपयोग कर रही है। यह सार्वजनिक न्याय के व्यापक हितों के विरुद्ध है ।

लोकमोर्चा संयोजक ने राज्यपाल को लिखे पत्र में कहा है कि प्रदेश की वर्तमान योगी सरकार इससे पहले भी गंभीर आपराधिक मामलों में आरोपी भाजपा नेताओं पर लगे मुकदमें वापस लेकर सत्ता का दुरुपयोग करती रही है। मार्च 2018 में योगी सरकार ने भाजपा सांसद स्वामी चिन्मयानंद के खिलाफ साध्वी के बलात्कार के मामले में धारा 376, 506 के तहत दर्ज मुकदमें को वापस लेने का आदेश दिया गया था। इसी तरह खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर 22 साल पुराना मुकदमा वापस लेने का आदेश दिया गया। यह मुकदमा 27 मई 1995 को गोरखपुर के पीपीगंज थाने में मौजूदा मुख्यमंत्री योगी व मौजूदा केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री शिव प्रताप शुक्ल समेत 13 लोगों पर आईपीसी की धारा 188 के तहत दर्ज हुआ था।  ऐसे बहुत से मामले हैं जिनमें भाजपा नेताओं पर लगे गंभीर आपराधिक मुकदमों को योगी सरकार ने वापस लेने की गलत सलाह  देकर महामहिम से सार्वजनिक न्याय के विरुद्ध आदेश कराए हैं।
एक ओर योगी सरकार प्रदेश में लोकतांत्रिक आंदोलनों में शामिल नागरिकों एवं नागरिकता संशोधन कानून, एनआरसी और एनपीआर का विरोध करने वाले अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय समेत अन्य विश्वविद्यालयों के छात्रों पर फर्जी मुकदमें लगाकर जेल भेज रही है। बेगुनाह डाक्टर कफील खान को एनएसए लगाकर जेल में डाल दिया है। वहीं दूसरी ओर बलात्कार समेत गंभीर आपराधिक मुकदमों में आरोपी स्वामी चिन्मयानन्द समेत भाजपा नेताओं से और खुद मुख्यमंत्री से मुकदमा वापसी कर सत्ता का दुरुपयोग कर रही है। 
उन्होंने बताया कि पत्र में लोकमोर्चा  की ओर से राज्यपाल से मांग की गई है कि 
1.प्रश्नगत मामले में बदायूं जनपद के भाजपा नेताओं पर लगे आपराधिक मुकदमे को वापस करने के निर्णय को रद्द किया जाए। 
2.योगी सरकार द्वारा भाजपा नेताओं से मुकदमा वापसी को लिए गए सभी आदेश रद्द किए जाएं ।
3.आपराधिक मामलों में मुकदमों में आरोप भाजपा नेताओं समेत सभी राजनेताओं के मुकदमों के तेजी से निपटारे को प्रदेश में फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट बनाकर साल भर के अंदर निस्तारण कराया जाए।
4. एएमयू के छात्रों समेत सभी आंदोलनकारियों के ऊपर लगे मुकदमें वापस लिए जाएं। डाक्टर कफील खान समेत सभी बेगुनाह आंदोलनकारियों को जेल से रिहा किया जाए।

टिप्पणियाँ

lakshika Mehta ने कहा…
The result of UP Board will be released on the scheduled dates. The candidates must make sure that they are up to date with the complete schedule of result. The authority, that holds the responsibility of releasing the result of UP Board is the UP Board of High School and Intermediate Education. The UP Board 12th Result 2020 will be released on the official website of the authority.

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