21 रमजान यानी शहादते मौला अली पर अच्छी बातें...


एक हदीस शरीफ में नबी करीम (स.अ.स.) ने ''सलाम'' करने को मुसलमान का हक बतलाया है। इससे भी ''सलाम'' की अहमियत मामूल होती है। 

हदीस शरीफ यह है -''हजरत अबू हुरैरा (रजि.) से रिवायत है कि नबी करीम (स.अ.स) ने फरमाया- एक मुसलमान के दूसरे मुसलमान पर छः हक है और यह कि :-
(1). जब मुलाकात हो तो सलाम करें।
(2). जब वह मदऊ करें तो उसकी दावत कुबूल करें (बशर्ते कि कोई शरई उज्र न हो)।
(3). जब वह नसीहत (या मुखलिसाना मशविरा) का तालिब हो तो उससे पीछे न हटें ।
(4). जब उसको छींक आए तो ''अलहम्दो लिल्लाह'' कहें तो यह उसको ''यरहकमुल्लाह'' कहें। 
(5). जब बीमार हो तो उसकी अयादत करें। 
(6). जब वह इंतकाल कर जाए तो उसके जनाजेके साथ जाएं।'' 
(मुस्लिम शरीफ)

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हजरत इमाम हुसैन रज़ी. फरमाते हैं
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