सदका ए फित्र अदा करना हर मुसलमान पर जरूरी : मुफ्ती साजिद हसनी

बरेली जनमत । रमजान का महीना तमाम इंसानों के दुख-दर्द और भूख-प्यास को समझने का महीना है ताकि रोजेदारों में भले-बुरे को समझने की सलाहियत पैदा हो।उन्होंने बताया कि रोजे के दौरान झूठ बोलने, चुगली करने, किसी पर बुरी निगाह डालने, किसी की निंदा करने और हर छोटी से छोटी बुराई से दूर रहना अनिवार्य है।मुफ्ती साजिद हसनी कादरी ने कहा कि रोजे रखने का असल मकसद महज भूख-प्यास पर नियंत्रण रखना नहीं है बल्कि रोजे की रूह दरअसल आत्म संयम, नियंत्रण, अल्लाह के प्रति अकीदत और सही राह पर चलने के संकल्प और उस पर मुस्तैदी से अमल में बसती है।उन्होंने कहा कि दुनिया के लिए रमजान का महीना इसलिए भी अहम है क्योंकि अल्लाह ने इसी माह में हिदायत की सबसे बड़ी किताब यानी कुरान शरीफ का दुनिया में अवतरण शुरू किया था।
रहमत और बरकत के नजरिए से रमजान के महीने को तीन हिस्सों (अशरों) में बाँटा गया है। इस महीने के पहले 10 दिनों में अल्लाह अपने रोजेदार बंदों पर रहमतों की बारिश करता है।दूसरे अशरे में अल्लाह रोजेदारों के गुनाह माफ करता है और तीसरा अशरा दोजख की आग से निजात पाने की साधना को समर्पित किया गया है।                             मुफ्ती साजिद हसनी कादरी ने कहा कि सदका ए फित्र अदा करना वाजिब (जरूरी) है जो व्यक्ति इतना मालदार है कि उस पर जकात वाजिब है तो उसे अपनी जकात के साथ साथ व अपनी नाबालिग औलाद की तरफ से भी सदका ए फित्र देना जरूरी है उसके वाजिब होने की तीन शर्तें हैं 1 -आजाद होना. 2-मुसलमान होना. 3- किसी ऐसे माल के मात्रा का मालिक होना जो असली जरूरत से ज्यादा हो तो उस माल पर साल गुजरना शर्त नहीं है और न ही माल का तिजारती होना है यहाँ तक कि नाबालिग और वह बच्चें ईद के दिन( तुलू ए आफताब) सूरज निकलने से पहले पैदा हुए हों और मजनूनो पर भी सदका ए फित्र निकालना बाजिब ( जरूरी ) है सदका ए फित्र के तौर पर 2.45 किलोग्राम गेहूं या उसके आटा की कीमत अदा की जाती है बेहतर है कि कीमत अदा करे इस बक्त एक व्यक्ति पर 40 रुपये सदका ए फित्र बन रहा है लिहाजा जो उसके हकदार हैं जैसे गरीब यतीम बे सहारे उन तक रकम पहुंचा दी जाए ताकि वह जरूरत मन्द लोग अपनी अपनी जरूरते अपने वक्त पर पुरी कर सके जब तक सदका ए फित्र अदा नहीं किया जाता है तब तक सारी इबादते व रोजे जमीन आसमान के बीचो बीच लटकती रहती हैं इसे अदा करने के वाद इबादते बारगाहे इलाही में पहुंच जाती है और रोजे व इबादतो में किसी किस्म कमी रह जाती है तो सदका ए फित्र उसे पूरी कर देता है ।

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