कुल की रस्म के साथ तीन रोजा उर्से कादरी का समापन, 178 वें उर्स पर पहुँचें हजारों मुरीदैन
बदायूँ जनमत । हजरत शाह ऐनुलहक अब्दुल मजीद कादरी का तीन रोजा उर्से मुबारक शानो शौकत से मनाया गया । 178 वे उर्स के मौके पर देश दुनिया से जायरीन बदायूं पहुंचे । जिन्होंने गुल और चादरपोशी कर खुद की और मुल्क की सलामती के लिए दुआएं मांगी । उर्स का समापन मंगलवार सुबह फज्र की नमाज़ के बाद बिदाई नामा पढ़कर कुल के साथ हुआ ।
उर्से कादरी के मौके पर ताजदारे अहले सुन्नत की सरपरस्ती व सदारत में कादरी मजीदी कॉफ्रेंस का आगाज हुआ । कारी जमीउद्दीन कादरी ने तिलावते कलामे मजीद से महफिल का आगाज़ किया।
हजरत हाफिज अब्दुल कय्यूम कादरी ने हजरत ताजुल फहूल का कलाम कुछ यूं पढ़ा । तेरे दर का हूं मैं मोहताज या महबूबे सुब्हानी, टलूंगा तुझसे से लेकर आज या महबूबे सुब्हानी, हमेशा से है तेरी सल्तनत मुल्के विलायत में, कयामत तक तेरा राज या महबूबे सुब्हानी। जमीउद्दीन कादरी ने फरमाया रूखे मुस्तफा हैं वह आईना कि उस जैसा दूसरा आईना न किसी की बज्मे ख्याल में। इनके अलावा हजरत मंजर चिश्ती, फुरकान, अनस कादरी, गुलाम सिब्ते कादरी, हन्नान कादरी ने नात मनकबत पेश की । इसके बाद मदरसे के तालिबे इल्म हाफिजा मुकम्मल कर चुके बच्चों की दस्तारबंदी की गई ।
इंसानियत और हक़ का रास्ता व पैगाम देने आए मेरे आका मदीने वाले...
ताजदारे अहले सुन्नत पीर सालिमुल कादरी ने कहा कि पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैह वसल्लम दुनिया में इंसानियत का पैगाम देने आए। इस्लाम लोगों को एक खुदा की इबादत करने को कहता है। इस्लाम नेकी की राह दिखाता है और बुरे मार्ग पर जाने से रोकता है। भाईचारा एकता को बढ़ावा भी इस्लाम देता है। महिलाओं के सम्मान को भी इस्लाम इजाजत देता है। मां, बाप के कदमों में जन्नत है ऐसा भी इस्लाम ही कहता है। ऐसे में हर इंसान को अपने मां बाप बुजुर्गो की खिदमत करना चाहिए। ऐसा करने वाले इंसान से अल्लाह तआला खुश रहते हैं।
उर्स में उमड़ी भीड़ दिल्ली, पंजाब, मुंबई, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात आदि से पहुंचे अकीदतमंद और जायरीनों के खाने पीने और ठहरने की व्यवस्था की गई ।
उर्से कादरी के मौके पर ताजदारे अहले सुन्नत की सरपरस्ती व सदारत में कादरी मजीदी कॉफ्रेंस का आगाज हुआ । कारी जमीउद्दीन कादरी ने तिलावते कलामे मजीद से महफिल का आगाज़ किया।
हजरत हाफिज अब्दुल कय्यूम कादरी ने हजरत ताजुल फहूल का कलाम कुछ यूं पढ़ा । तेरे दर का हूं मैं मोहताज या महबूबे सुब्हानी, टलूंगा तुझसे से लेकर आज या महबूबे सुब्हानी, हमेशा से है तेरी सल्तनत मुल्के विलायत में, कयामत तक तेरा राज या महबूबे सुब्हानी। जमीउद्दीन कादरी ने फरमाया रूखे मुस्तफा हैं वह आईना कि उस जैसा दूसरा आईना न किसी की बज्मे ख्याल में। इनके अलावा हजरत मंजर चिश्ती, फुरकान, अनस कादरी, गुलाम सिब्ते कादरी, हन्नान कादरी ने नात मनकबत पेश की । इसके बाद मदरसे के तालिबे इल्म हाफिजा मुकम्मल कर चुके बच्चों की दस्तारबंदी की गई ।
इंसानियत और हक़ का रास्ता व पैगाम देने आए मेरे आका मदीने वाले...
ताजदारे अहले सुन्नत पीर सालिमुल कादरी ने कहा कि पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैह वसल्लम दुनिया में इंसानियत का पैगाम देने आए। इस्लाम लोगों को एक खुदा की इबादत करने को कहता है। इस्लाम नेकी की राह दिखाता है और बुरे मार्ग पर जाने से रोकता है। भाईचारा एकता को बढ़ावा भी इस्लाम देता है। महिलाओं के सम्मान को भी इस्लाम इजाजत देता है। मां, बाप के कदमों में जन्नत है ऐसा भी इस्लाम ही कहता है। ऐसे में हर इंसान को अपने मां बाप बुजुर्गो की खिदमत करना चाहिए। ऐसा करने वाले इंसान से अल्लाह तआला खुश रहते हैं।
उर्स में उमड़ी भीड़ दिल्ली, पंजाब, मुंबई, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात आदि से पहुंचे अकीदतमंद और जायरीनों के खाने पीने और ठहरने की व्यवस्था की गई ।
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