महाराष्ट्र : फ्लोर टेस्ट पर सुप्रीम कोर्ट कल फैसला सुनाएगा, विपक्षी दलों ने कहा- राकांपा के 54 में से 41 विधायक शरद पवार के साथ

मुंबई जनमत । महाराष्ट्र में जारी राजनीतिक उठापटक के बीच रविवार को सुप्रीम कोर्ट में विपक्षी दलों की याचिका पर सुनवाई हुई। जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस संजीवखन्ना की बेंच ने सुनवाई की। बेंच ने मामले में केंद्र, महाराष्ट्र सरकार, देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार को नोटिस जारी किया। कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल से कहा कि राज्यपाल के लिखे पत्र कल सुबह 10.30 बजे अदालत के सामने पेश करें ताकि उस आधार पर आदेश जारी किया जा सके।अदालत कल ही उचित आदेश देगी। शिवसेना, कांग्रेस-राकांपा के लिए सुप्रीम कोर्ट में पैरवी के लिए 24 वकीलों की टीम थी। वहीं भाजपा के लिए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता समेत 37 वकीलों की टीम थी ।

शिवसेनाकी तरफ सेसिब्बल कीदलीलें

‘‘रविवार को आप लोगों को तकलीफ दी, इसके लिए माफी मांगते हैं। विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 145 का है। चुनाव पूर्व गठबंधन काे पहले मौका मिलता है। लेकिन चुनाव पूर्व गठबंधन टूट गया। अब हम चुनाव बाद बने गठबंधन पर निर्भर हैं।’’
‘‘शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस ने 22 नवंबर को शाम को प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। इसमें कॉमन मिनिमम प्रोग्राम का ऐलान किया गया था और कहा गया था कि सरकार उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में बनेगी। लेकिन इसके बाद जो हुआ, वो अजीब था। मैंने कभी ऐसी चीज देश में नहीं देखी। उन्होंने राष्ट्रपति शासन हटा लिया। इस पर कैबिनेट मीटिंग नहीं हुई। अगर कैबिनेट मीटिंग नहीं हुई तो यह जरूर नेशनल इमरजेंसी हुई। सुबह करीब 8 बजे फडणवीस के नेतृत्व में सरकार बन गई। लेकिन सरकार के पास बहुमत था या नहीं यह रहस्य ही रहा। कोई भी दस्तावेज पब्लिक रिकॉर्ड पर नहीं रखा गया। गवर्नर सीधे निर्देशों पर काम कर रहे थे, वरना ऐसी चीजें न होतीं।’’
‘‘शनिवार को सुबह 5:17 बजे राष्ट्रपति शासन हटा लिया गया। सुबह 8 बजे दो लोगों ने मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली। उनकी तरफ से कौन-से दस्तावेज दिए गए? जब किसी ने शाम 7 बजे यह घोषणा कर दी थी कि हम सरकार बनाने जा रहे हैं तो फिर राज्यपाल का दूसरों को शपथ दिलाने का कदम पक्षपातपूर्ण, गलत नीयत से भरा और इस अदालत द्वारा तय नियमों के विपरीत है। कैबिनेट की बैठक के बिना ही राष्ट्रपति शासन हटाए जाने की सिफारिश करना बहुत अजीब है। राज्यपाल दिल्ली से मिल रहे निर्देशों पर काम कर रहे थे। अदालत आज ही फ्लोर टेस्ट कराने का निर्देश दे। अगर भाजपा के पास बहुमत है तो वह विधानसभा में उसे साबित करे। अगर उसके पास बहुमत नहीं है तो हमें सरकार बनाने का दावा पेश करने दिया जाए।’’
‘‘हमने यह कर्नाटक में भी देखा है। अगर उनके पास बहुमत है तो उन्हें बहुमत साबित करने दीजिए। महाराष्ट्र की जनता एक सरकार चाहती है। हमारे पास बहुमत है और हम इसे साबित करने को तैयार हैं। हम कल ही बहुमत साबित करने को तैयार हैं।’’
‘‘राज्यपाल ने सत्तारूढ़ दल को बहुमत साबित करने के लिए 30 नवंबर का जो वक्त दिया है, उसके मायने कुछ और नजर आ रहे हैं।’’

महाराष्ट्र भाजपा की तरफ से मुकुल रोहतगी ने पैरवी की

‘‘मुझे समझ नहीं आ रहा कि रविवार को सुनवाई क्यों हो रही है। रविवार को ऐसे सुनवाई नहीं होनी चाहिए। मेरे हिसाब से यह मामला लिस्टेड ही नहीं होना चाहिए था। यह याचिका पहले बॉम्बे हाईकोर्ट में दाखिल होनी थी।’’
‘‘क्या सुप्रीम कोर्ट एडवांस फ्लोर टेस्ट का आदेश दे सकता है? याचिका में जरूरी दस्तावेज नहीं हैं। इन लोगों को कुछ नहीं पता। ये लोग तीन हफ्ते तक सो रहे थे। उनके दावों के समर्थन में कोई दस्तावेज मौजूद नहीं है।’’
‘‘अनुच्छेद 212 को देखिए। किसी भी विधानसभा में कार्यवाही की वैधता पर इस आधार पर सवाल नहीं उठाया जा सकता कि उनकी प्रक्रिया में अनियमितता थी। क्या होगा अगर सदन ने बिल पास किया और कहा कि सुप्रीम कोर्ट को सभी मामलों को 2 साल में सुलझा दे।’’ (इस पर कोर्ट में सभी हंसने लगे)। इसके बाद जस्टिस रमना ने कहा कि ऐसा हो सकता है, हम नहीं जानते ।

कांग्रेस-राकांपा की तरफ से अभिषेक मनु सिंघवी ने दलीलें दीं

‘‘दस्तखत किए गए सत्यापित दस्तावेजों के आधार पर प्रथम दृष्टया बहुमत नजर आने पर आगे बढ़ना ही राज्यपाल के लिए तय मानदंड होता है। जब हमने शुक्रवार शाम 7 बजे यह घोषणा कर दी थी कि हम सरकार बनाने का दावा पेश करेंगे और उद्धव ठाकरे सरकार का नेतृत्व करेंगे तो क्या राज्यपाल इंतजार नहीं कर सकते थे?’’
‘‘महज 42-43 सीटों के समर्थन के आधार पर अजित पवार उपमुख्यमंत्री कैसे बन सकते हैं? यह लोकतंत्र की हत्या है। अजीत पवार पार्टी के नेता नहीं हैं। अगर उनके पास अपनी ही पार्टी का समर्थन नहीं है तो वे डिप्टी सीएम कैसे रह सकते हैं।’’
‘‘राकांपा के पास 54 विधायक हैं। इनमें से 41 विधायक शरद पवार के साथ हैं। इन 41 विधायकों ने राज्यपाल को पत्र लिखकर कहा है कि अजित पवार को विधायक दल के नेता के पद से हटा दिया गया है। 1998 का उत्तर प्रदेश का मामला हो या 2018 का कर्नाटक का मामला, सुप्रीम कोर्ट ने हमेशा तुरंत फ्लोर टेस्ट के आदेश दिए हैं। जो श्रेष्ठ होता है, जीत उसकी हो सकती है। तो क्यों न आज या कल फ्लोर टेस्ट कराया जाए? ऐसा कैसे हो सकता है, जिसने कल बहुमत का दावा कर शपथ ले ली थी, आज वे फ्लोर टेस्ट से बचने लगे?’’

याचिका में राज्यपाल के फैसले को चुनौती

शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस नेदेवेंद्र फडणवीस और अजित पवार को शपथ दिलाने के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के फैसले को चुनौती दी है। याचिका में विपक्ष ने राज्यपाल के फैसले को मनमाना और दुर्भावनापूर्ण बताया है। तीनों पार्टियों ने मांग की है कि विधायकों की खरीद-फरोख्त रोकने के लिए सरकार गठन के 24 घंटे में फ्लोर टेस्ट हो जाए ।

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