लेख: पार्टी में शामिल होना कमाल नहीं होता साहेब सूची में 'नाम' होना 'कमाल' होता है

एस•शाहिद अली। हाल ही में बसपा छोड़ समाजवादी पार्टी में शामिल हुए काज़ी मोहम्मद रिज़वान ने सियासी समीकरणों को बदल दिया है। लोग तरह तरह के कयास लगा रहे हैं। कुछ का मानना है कि काज़ी रिज़वान को सदर विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी उम्मीदवार घोषित करेगी। 
हालांकि सपा जिला कार्यालय पर पहुंचे काज़ी रिज़वान ने यह साफ तौर पर कहा दिया है कि "पार्टी का फैसला उनके सर माथे होगा। वह पार्टी के लिए यूथ से लेकर बूथ स्तर तक काम करने को तैयार हैं"। इससे स्पष्ट है कि वह चुनाव लड़ भी सकते हैं और नहीं भी, वहीं राजनैतिक विश्लेषणों की मानें तो समाजवादी पार्टी उन्हें डमी उम्मीदवार के तौर पर भी इस्तेमाल कर सकती है। पार्टी को जिले में एक ही मुसलमान को टिकिट देना है। वहीं अभी तक जिले भर में शेखूपुर विधानसभा से पूर्व विधायक हाजी मुस्लिम खां इकलौते मुसलमान प्रत्याशी के रूप में टिकिट की दावेदारी ठोंके बैठे थे। उनकी दावेदारी में सेंध लगाने के लिए काज़ी रिज़वान का इस्तेमाल किया गया है। 
विश्लेषणात्मक बात यह भी है कि पूर्व विधायक आबिद रज़ा के सामने किसी भी मुसलमान प्रत्याशी का जीत पाना 'छींका टूटने' के जैसा होगा। वहीं सूत्रों से खबर यह भी है कि पूर्व विधायक आबिद रज़ा ने भी सपा में दाखिले को लेकर अभी तक हार नहीं मानी है। उनका सपा में जाना कोई बड़ी और कमाल की बात नहीं होगी क्योंकि मौजूदा सपा जिलाध्यक्ष प्रेमपाल सिंह यादव ने पिछले विधानसभा चुनाव में (जो कांग्रेस और सपा के गठबंधन से हुआ था) जिसमें दातागंज सीट कांग्रेस को मिली थी तब एक ही रात में सपा छोड़ कांग्रेस से टिकिट ले लिया था, और सारे कांग्रेसी खासकर कांग्रेस से उम्मीदवार हक्का बक्का रह गये थे। 
इसलिए किसी भी राजनीतिक पार्टी में शामिल होना कमाल नहीं होता, टिकिट की सूची में नाम होना कमाल होता है। 


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